Foundation and University publication

2021 अप्रैल में फिर से देश में तालाबन्दी होगी, ऐसी कल्पना नहीं थी। मार्च में लगने लगा था कि धीरे–धीरे स्कूल भी खुल पाएँगे, परन्तु दूसरी लहर के कारण पुनः लॉकडाउन हुआ और आगेका समय फिर सेपूर्णतः अनिश्चित हो गया। बीतेसवा साल के लम्बे कोरोना काल ने स्वास्थ्य, रोज़गार, आजीविका और शिक्षा जैसेपहलुओं को गहनता सेप्रभावित किया। इस पूरेदौर में स्कूल बन्द ही रहे। बच्चे मानो अपनेघरों मेंलगभग बन्द सेहो गए। स्कूल बन्द हैंऔर दोस्तों सेमुलाक़ात एवं खेलना भी बन्द है। उनकी आज़ादी पर तो पूरा अंकुश हैही, पर इसके साथ–साथ बहुत–सेबच्चों ने निकट सेइस बीमारी और इसके तनाव को भी महसूस किया है। कईयों ने विस्थापन और विपन्नता के चलतेभूख का भी सामना किया है। इस दौर मेंबचपन मानो सिमटकर रह गया है

June, 2021

सम्पादकीय

गुरबचन सिंह

लेखन ग़लतियाँ और उनका विश्लेषण

मीनू पालीवाल

पढ़नेका सफ़र बनाम सक्रिय साक्षरता का सफ़र

अनिल सिंह

‘सुनीता की पहिया कुर्सी’ पाठ की समझ और उसकी प्रक्रिया

मधु रावत

‘नन्हा फ़नकार’ और सीखने के प्रतिफल

अनीता ध्यानी

घर जाने की पूरी छुट्ट

मुकेश मालवीय

सिद्धान्त बनाम व्यवहार

अनवर हुसैन

बच्चे, कहानियाँ और बातचीत

अलका तिवारी

किताबों पर बातचीत

कमलेश चन्द्र जोशी

पढ़ने–लिखने की प्रक्रियाओं में बाल डायरी

मंजू नौटियाल

जब बच्चों ने मापी दोस्ती!

नीतू सिंह

पढ़ना–लिखना और दीवार पत्रिका

संगीता फरासी

पैकिंग कवर (रैपर) और पढ़ना-लिखना

श्रीदेवी

सीखने की राह में पुस्तकालय का संग

सम्पूर्णानन्द जुयाल

स्कूल की अनकही कहानियाँ अब अनकही नही

प्रभात

“उस दिन से आज तक रुकी नहीं हूँ”

शिक्षिका रीता मंडल से पुरुषोत्तम ठाकुर की बातचीत

बच्चों में पढ़ना–लिखना सीखने और बुनियादी गणितीय क्षमताओं के विविध आयाम

चुनौतियाँ और सम्भावित समाधान

पटक चश्मा

गुरबचन सिंह